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सुनो ध्यान से कहती क्या यह धरती माता,
बढ़ गया बोझ पापियों से, अब नही सहा जाता.
किया प्रयास मैंने खूब पर पाप का घड़ा भर चूका है ,
ह्रदय पर मेरे भ्रस्ताचार का पत्थर पद चूका है.
कहने पर मेरे विष्णु-शिव ने भी किया प्रयत्न,
पापियों का नही पाप का हो पतन.
पर हर कोई चुके मेरे पूत मुझसे ही रूठे,
उलट-पुलट हुई मेरी अभिलाषा, थी नही मुझे अपनों से ये आशा.
बढ़ गया बोझ पापियों से, अब नही सहा जाता,
सुनो ध्यान से कहती क्या ये धरती माता.
गुणगान करती थी मई कभी युधिस्तिर से सपूतों की,
शर्मशार हुई मई देख बढती संख्या दुर्योधन से कपूतों की.
सजता था कभी मेरे माथे भी सुन्दर मुकुट,
पूतों के पाप से कलंकित हुई मेरी यह किरीट.
बढ़ गया बोझ पापियों से, अब नही सहा जाता,
सुनो ध्यान से कहती क्या ये धरती माता.
पर न मई भूलूंगी अपना धर्म,
दूंगी सदा तुम्हे आसरा, चाहे करो तुम पाप कर्म.
मैंने तो सह लिया, समझौता तुम्हारे अत्याचारों से कर लिया,
पर ईश्वर को न समझा सकी, प्रलयभोग से न तुम्हे बचा सकी.
बढ़ गया बोझ पापियों से, अब नही सहा जाता,
सुनो ध्यान से कहती क्या ये धरती माता.
अब तो आ रहा है मुझे भी गुस्सा,
कभी-कभी मन कहता अन्न वियोग से करू तुम्हारा खत्म किस्सा.
पर मानता कहाँ मेरी हर बार ये दिल
जाने क्यों कपूतों को चाहता यह दिल?
बचा नही सकते मेरा मान पर ईश्वर का अपमान न करो,
पहले पाप फिर यात्रा चारों धाम की, ऐसा मजाक न करो.
है मेरी सलाह, तुम इसकदर न उन्हें उकसाओ,
खोल दे वे जटा अपनी तथा चक्र प्रकोप से भी न बाख पाओ.
देख न पाऊँगी तुम्हारा विनाश,
तुम से पहले खुद का ही कर दू मई नाश.
फिर न कोई तुम्हे इस कदर आसरा देगा,
अपने मम्तत्व की छाया में इसकदर बसेरा देगा.
हूँ जानती पुण्य संग पाप भी होगा,
पर बिन पुण्य पाप का क्या होगा.
बढ़ गया बोझ पापियों से, अब नही सहा जाता,
सुनो ध्यान से कहती क्या ये धरती माता.
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